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हाईकोर्ट का बड़ा बयान, महिलाओं की तरह पुरुषों में भी गर्व और गरिमा, देखें डिटेल

एक ऐतिहासिक फैसले में, केरल हाई कोर्ट ने पुरुषों के सम्मान और गरिमा की अहमियत पर दिया जोर। बालचंद्र मेनन केस में जमानत के साथ कोर्ट ने उठाए देरी से दर्ज शिकायत पर बड़े सवाल। जानें, क्यों यह फैसला बन सकता है न्याय का नया मील का पत्थर।

By Praveen Singh
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हाईकोर्ट का बड़ा बयान, महिलाओं की तरह पुरुषों में भी गर्व और गरिमा, देखें डिटेल
हाईकोर्ट का बड़ा बयान, महिलाओं की तरह पुरुषों में भी गर्व और गरिमा

बुधवार को केरल हाईकोर्ट ने अनुभवी अभिनेता-निर्देशक बालचंद्र मेनन को अग्रिम जमानत देकर एक अहम संदेश दिया कि पुरुषों के “गर्व और गरिमा” को भी उतनी ही संवेदनशीलता से समझा जाना चाहिए जितना कि महिलाओं के मामले में होता है। यह निर्णय 2007 की एक घटना पर आधारित था, जिसमें एक महिला अभिनेता ने मेनन पर अपनी गरिमा को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया था।

महिलाओं की तरह पुरुषों में भी ‘गर्व और गरिमा’ होती है: केरल हाई कोर्ट

न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन की अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई हुई। उन्होंने कहा कि महिलाओं की तरह पुरुषों की गरिमा और सम्मान को भी समान महत्त्व दिया जाना चाहिए। मामले की जड़ें 17 साल पुरानी एक शिकायत से जुड़ी हैं, जिसे हेमा समिति की रिपोर्ट के बाद दर्ज किया गया। इस रिपोर्ट में फिल्म उद्योग में यौन दुराचार के मामलों की विस्तृत जांच की गई थी।

शिकायत दर्ज करने में हुई देरी पर सवाल

मेनन के खिलाफ शिकायत घटना के 17 साल बाद आई, जिससे शिकायत की प्रामाणिकता पर सवाल उठे। न्यायमूर्ति कुन्हीकृष्णन ने देरी को गंभीरता से लेते हुए कहा कि इतने वर्षों के अंतराल के बाद आरोप लगाना न्याय के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्होंने कहा, “17 साल बाद, केवल एक महिला के बयान के आधार पर मामला दर्ज करना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ प्रतीत होता है।”

मेनन ने अदालत में अपनी प्रतिष्ठा पर जोर दिया, जिसमें 40 से अधिक फिल्मों का निर्देशन, दो राष्ट्रीय पुरस्कार और प्रतिष्ठित पद्म श्री सम्मान शामिल हैं। उन्होंने दावा किया कि शिकायत केवल उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से की गई थी।

अग्रिम जमानत और जांच में सहयोग की शर्तें

हाईकोर्ट ने मेनन को 50,000 रुपये के बांड और समान राशि के दो सॉल्वेंट जमानतियों के साथ अग्रिम जमानत दी। इसके साथ ही उन्हें जांच में पूरी तरह सहयोग करने और गवाहों को प्रभावित करने या प्रक्रिया में बाधा डालने से बचने का निर्देश दिया गया। न्यायालय ने मेनन को जांच अधिकारी के समक्ष दो सप्ताह के भीतर उपस्थित होने का भी आदेश दिया।

मेनन पर भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए, जिनमें महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए आपराधिक बल का उपयोग, इशारों या शब्दों का दुरुपयोग और आपराधिक धमकी शामिल हैं।

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FAQs

1. यह मामला किस संदर्भ में दर्ज हुआ?
यह मामला 2007 की एक घटना पर आधारित है, जिसमें एक महिला अभिनेता ने बालचंद्र मेनन पर उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया था। शिकायत हेमा समिति की रिपोर्ट के बाद दर्ज की गई थी।

2. शिकायत दर्ज करने में देरी को कोर्ट ने कैसे देखा?
न्यायालय ने 17 साल की देरी को गंभीरता से लेते हुए शिकायत की वैधता पर सवाल उठाया और कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद मामला दर्ज करना न्याय के लिए चुनौतीपूर्ण है।

3. बालचंद्र मेनन ने अपने बचाव में क्या कहा?
मेनन ने तर्क दिया कि शिकायत का उद्देश्य उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना था। उन्होंने अपने फिल्मी करियर और सम्मानजनक उपलब्धियों का उल्लेख किया।

4. क्या कोर्ट ने शिकायत को पूरी तरह से खारिज कर दिया?
कोर्ट ने शिकायत को खारिज नहीं किया लेकिन मेनन को अग्रिम जमानत देते हुए जांच में सहयोग करने की शर्तें लगाईं।

केरल हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल न्याय की अवधारणा को स्पष्ट करता है, बल्कि पुरुषों और महिलाओं दोनों की गरिमा और सम्मान को समान महत्त्व देने की जरूरत पर जोर देता है। शिकायत दर्ज करने में हुई देरी ने मामले को जटिल बनाया, लेकिन न्यायालय ने निष्पक्षता बनाए रखते हुए सभी पक्षों को सुना।

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