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क्या औलाद से प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं माता पिता, हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अगर बच्चे मां-बाप की देखभाल में असफल रहते हैं, तो माता-पिता को अपनी संपत्ति वापस लेने का पूरा अधिकार। जानें यह मामला और अपने अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कानूनी प्रावधान।

By Praveen Singh
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क्या औलाद से प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं माता पिता, हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
क्या औलाद से प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं माता पिता?

भारत में माता-पिता की प्रॉपर्टी और उनके अधिकारों से जुड़ी खबरों में एक महत्वपूर्ण फैसला सामने आया है। मद्रास हाईकोर्ट ने औलाद द्वारा माता-पिता की देखभाल न करने पर संपत्ति वापस लेने का अधिकार स्पष्ट किया है। यह फैसला तमिलनाडु के तिरुपुर जिले की एक महिला शकीरा बेगम और उनके बेटे मोहम्मद दयान के बीच संपत्ति विवाद के मामले में सुनाया गया। इस फैसले ने समाज में माता-पिता के अधिकारों पर गहरा असर डाला है।

हाईकोर्ट में प्रॉपर्टी से जुड़ा मामला

शकीरा बेगम ने अपने बेटे मोहम्मद दयान को यह शर्त पर संपत्ति सौंपी थी कि वह उनका भरण-पोषण करेगा। लेकिन बेटे ने अपने वादे को निभाने में असफलता दिखाई। जब बेटे ने अपने कर्तव्य को दरकिनार कर दिया, तो शकीरा बेगम ने अपने संपत्ति निपटान पत्र को रद्द करने के लिए सब-रजिस्ट्रार के पास शिकायत दर्ज की। जब कोई समाधान नहीं निकला, तो यह मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा।

मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

मद्रास हाईकोर्ट ने शकीरा बेगम के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी को वापस लेने का अधिकार रखते हैं, अगर उनकी संतान वादे के मुताबिक देखभाल करने में असमर्थ रहती है। न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यम ने कहा, “जब संतान अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट जाती है और माता-पिता की गरिमा व देखभाल की अनदेखी करती है, तो माता-पिता को अपनी संपत्ति पर पुनः अधिकार प्राप्त करने का पूरा हक है।”

संपत्ति रद्द करने का अधिकार

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि प्रॉपर्टी सहमति पत्र के आधार पर सौंपी गई है और उसमें यह लिखा गया है कि संपत्ति भावनात्मक आधार पर ट्रांसफर की गई थी, तो माता-पिता इसे एकतरफा रद्द कर सकते हैं। यह फैसला यह भी दर्शाता है कि सहमति पत्र सिर्फ उस स्थिति में मान्य होगा, जब संतान अपने वादे का पालन करती हो। माता-पिता अपनी संपत्ति को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपयोग करने का अधिकार रखते हैं।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला उन माता-पिता के लिए राहत की बात है, जो बुजुर्गावस्था में अपने बच्चों द्वारा उपेक्षा का सामना करते हैं। यह निर्णय “पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस मेनटेनेंस एंड वेलफेयर एक्ट” के तहत बुजुर्गों के अधिकारों को और मजबूत करता है। जज ने कहा, “समाज में बुजुर्गों के प्रति मानवीय आचरण जब कमजोर हो जाता है और उनकी देखभाल नहीं होती, तो उन्हें कानून का सहारा लेने का पूरा अधिकार है।”

माता-पिता के लिए कानूनी सहारा

माता-पिता अपनी सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कानूनी प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं:

  • पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस मेनटेनेंस एंड वेलफेयर एक्ट: यह कानून माता-पिता और बुजुर्ग नागरिकों के भरण-पोषण और उनके अधिकारों की रक्षा करता है।
  • संपत्ति पर पुनः दावा: यदि कोई संतान अपने दायित्व का पालन नहीं करती, तो माता-पिता कोर्ट में संपत्ति को वापस लेने का दावा कर सकते हैं।
  • संपत्ति निपटान की शर्तें: प्रॉपर्टी ट्रांसफर करते समय उचित शर्तें और वादे स्पष्ट रूप से लिखे जाने चाहिए।

FAQs

1. माता-पिता कब प्रॉपर्टी वापस ले सकते हैं?
अगर संतान वादे के मुताबिक माता-पिता की देखभाल में असफल रहती है, तो माता-पिता संपत्ति वापस ले सकते हैं।

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2. क्या सहमति पत्र रद्द किया जा सकता है?
हां, अगर संपत्ति भावनात्मक आधार पर ट्रांसफर की गई है और संतान देखभाल नहीं कर रही है, तो सहमति पत्र रद्द किया जा सकता है।

3. माता-पिता के अधिकारों की रक्षा के लिए कौन सा कानून है?
पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस मेनटेनेंस एंड वेलफेयर एक्ट 2007 माता-पिता के अधिकारों की रक्षा करता है।

4. क्या कोर्ट में संपत्ति विवाद सुलझाया जा सकता है?
हां, माता-पिता कोर्ट में अपनी प्रॉपर्टी को वापस लेने के लिए दावा कर सकते हैं।

5. क्या यह फैसला सभी राज्यों में लागू होता है?
यह फैसला मद्रास हाईकोर्ट का है, लेकिन यह अन्य राज्यों के लिए भी प्रेरणा हो सकता है और समान कानूनों को लागू करने में मदद कर सकता है।

मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल एक कानूनी मिसाल है, बल्कि समाज के लिए एक संदेश भी है। यह निर्णय उन बच्चों को चेतावनी है, जो माता-पिता की उपेक्षा करते हैं। माता-पिता की देखभाल करना न केवल एक नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि कानून भी इसे सुनिश्चित करता है।

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