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अमान्य शादी से जन्मे बच्चे का भी संपत्ति पर होगा पूरा हक, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

शून्य घोषित विवाह या अमान्य शादी से जन्मे बच्चों को भी मिलेगा माता-पिता की संपत्ति में कानूनी अधिकार। जानिए सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले का क्या है असर और कैसे बदलेंगे उत्तराधिकार कानून के नियम।

By Praveen Singh
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अमान्य शादी से जन्मे बच्चे का भी संपत्ति पर होगा पूरा हक, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
अमान्य शादी से जन्मे बच्चे का भी संपत्ति पर होगा पूरा हक

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि अमान्य (Void), शून्य घोषित (Voidable) या शून्य घोषित किए जाने योग्य विवाह से जन्मे बच्चों को भी संपत्ति पर पूरा कानूनी अधिकार मिलेगा। यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Act) के दायरे में आने वाले बच्चों के अधिकारों में एक बड़ा बदलाव लाने वाला है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस निर्णय को 2011 में दायर याचिका पर सुनाया था।

धारा 16(2) के तहत कानूनी मान्यता

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 16(2) का हवाला देते हुए कहा कि शून्य या रद्द किए गए विवाह से जन्मे बच्चे भी कानूनी रूप से वैध माने जाएंगे। यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि यदि विवाह को शून्य घोषित कर दिया जाता है, तब भी ऐसे विवाह से जन्मे बच्चे संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं होंगे। अदालत का यह फैसला परिवार के भीतर संपत्ति के वितरण में निष्पक्षता और समानता को सुनिश्चित करता है।

सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण: संपत्ति में हिस्सा कैसे मिलेगा?

अदालत ने अपने फैसले को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण भी दिया। मान लीजिए परिवार में चार भाई हैं – A1, A2, A3, और A4। यदि A2 की मृत्यु के पहले पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा हो जाता है और उसे संपत्ति का एक चौथाई हिस्सा दिया जाता है, तो A2 की संपत्ति के हिस्से को तीन भागों में विभाजित किया जाएगा। इन तीन हिस्सों में उसकी विधवा पत्नी, उसकी वैध शादी से जन्मी बेटी और शून्य घोषित विवाह से जन्मा बेटा शामिल होंगे।

यह उदाहरण इस बात पर प्रकाश डालता है कि शून्य घोषित विवाह से जन्मे बच्चों को पारिवारिक संपत्ति में बराबर का अधिकार मिलेगा।

शून्य और शून्य किए जाने योग्य विवाह की परिभाषा

हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह को दो वर्गों में बांटा गया है:

  • शून्य विवाह (Void Marriage): इसमें पति-पत्नी का दर्जा नहीं होता और इसे रद्द करने के लिए किसी कानूनी प्रक्रिया (डिग्री) की आवश्यकता नहीं होती।
  • शून्य किए जाने योग्य विवाह (Voidable Marriage): इसमें विवाह के दौरान पति-पत्नी का दर्जा बना रहता है लेकिन इसे रद्द करने के लिए कानूनी डिग्री आवश्यक होती है।

बेटियों को संपत्ति पर समान अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में यह भी सुनिश्चित किया है कि बेटियों को भी संपत्ति पर बेटों के समान अधिकार मिलेगा। यह फैसला बेटियों और विवाह के बाहर जन्मे बच्चों दोनों के लिए समान अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विवाह के बाहर जन्मे बच्चों के अधिकार स्व-अर्जित संपत्ति और पैतृक संपत्ति दोनों पर सुरक्षित होंगे।

हिंदू उत्तराधिकार कानून में बड़ा बदलाव

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत संपत्ति के वितरण में बदलाव लाता है। यह निर्णय कानूनी रूप से कमजोर वर्गों, जैसे विवाह के बाहर जन्मे बच्चों और शून्य घोषित विवाह के बच्चों के अधिकारों को मजबूत करता है। इसके साथ ही यह सामाजिक भेदभाव को खत्म करने और समानता सुनिश्चित करने का प्रयास है।

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FAQs

1. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला किस कानून के तहत लिया गया है?
यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(2) के तहत लिया गया है।

2. क्या शून्य विवाह से जन्मे बच्चों को भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा?
जी हां, सुप्रीम कोर्ट के अनुसार शून्य विवाह से जन्मे बच्चों को भी संपत्ति पर पूरा कानूनी अधिकार मिलेगा।

3. शून्य और शून्य किए जाने योग्य विवाह में क्या अंतर है?
शून्य विवाह में पति-पत्नी का दर्जा नहीं होता और इसे रद्द करने के लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं होती, जबकि शून्य किए जाने योग्य विवाह में डिग्री की जरूरत होती है।

4. क्या बेटियों को भी समान अधिकार मिलेगा?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बेटियों को भी बेटों की तरह संपत्ति पर समान अधिकार मिलेगा।

5. क्या विवाह के बाहर जन्मे बच्चों को संपत्ति पर हक होगा?
हां, विवाह के बाहर जन्मे बच्चों को भी स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति पर कानूनी अधिकार मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह न केवल हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित करता है, बल्कि समाज में समानता और न्याय की दिशा में भी बड़ा कदम है। विवाह की वैधता पर सवाल होने के बावजूद जन्मे बच्चों को उनके माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलना अब सुनिश्चित हो गया है।

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