बेटी अपने मामा से शादी करना चाहती है’… पिता की फरियाद पर एमपी हाई कोर्ट ने दिया यह फैसला

जब ग्वालियर हाई कोर्ट में पिता ने अपनी बेटी की अनोखी फरियाद रखी, तो सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने दिया ऐसा फैसला, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। मामा-भांजी की शादी पर कोर्ट ने क्या कहा? पढ़ें पूरी कहानी जो सामाजिक परंपराओं और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच की गहरी खाई को उजागर करती है।

By Praveen Singh
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बेटी अपने मामा से शादी करना चाहती है’… पिता की फरियाद पर एमपी हाई कोर्ट ने दिया यह फैसला
एमपी हाई कोर्ट ने दिया यह फैसला

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ ने एक रोचक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। गोले के मंदिर स्थित कुंज विहार कॉलोनी की एक युवती, जो बिना बताए घर से गायब हो गई थी, ने कोर्ट में पेश होकर अपनी मर्जी से अपने रिश्ते के मामा के साथ शादी करने की इच्छा जताई। युवती ने साफ तौर पर बयान दिया कि उसने अपनी मर्जी से यह निर्णय लिया है।

क्या है पूरा मामला यहाँ जानें

यह घटना ग्वालियर के कुंज विहार कॉलोनी की है। युवती कुछ समय पहले अचानक घर से लापता हो गई थी। परिजनों ने उसे खोजने की हर संभव कोशिश की, लेकिन असफल रहे। आखिरकार, परिवार ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की। मामले की सुनवाई के दौरान, युवती को कोर्ट में पेश किया गया, जहां उसने स्पष्ट रूप से बताया कि वह अपनी मर्जी से गई थी और युवक के साथ रहना चाहती है।

युवती के पिता ने कोर्ट को बताया कि युवक, जिससे वह शादी करना चाहती है, रिश्ते में उसका मामा है। यह तथ्य सुनकर कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुना और पाया कि युवती बालिग है और अपनी इच्छानुसार निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।

एमपी हाई कोर्ट ने दिया यह फैसला

हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय कानून में बालिग व्यक्ति अपनी मर्जी से जीवन साथी चुन सकता है, भले ही पारिवारिक और सामाजिक मान्यताएं इससे भिन्न क्यों न हों। कोर्ट ने युवती को अपनी मर्जी से जाने की अनुमति दे दी। यह फैसला भारतीय न्याय व्यवस्था की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्राथमिकता देने की मिसाल है।

(FAQs)

1. क्या मामा-भांजी की शादी कानूनी है?
भारतीय कानून के अनुसार, हिंदू मैरिज एक्ट में कुछ रिश्तों में शादी प्रतिबंधित है। हालांकि, अगर दोनों पक्ष बालिग हैं और समाज की सहमति हो तो परिस्थितियां अलग हो सकती हैं।

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2. क्या युवती को उसकी मर्जी से जाने देना सही था?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का अधिकार है। इसी आधार पर कोर्ट ने फैसला दिया।

3. परिवार की सहमति की क्या भूमिका होती है?
कानूनी रूप से बालिग व्यक्ति के फैसले में परिवार की सहमति आवश्यक नहीं है, हालांकि सामाजिक मान्यताएं इस पर प्रभाव डाल सकती हैं।

यह मामला व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक परंपराओं के बीच संतुलन का उदाहरण है। कोर्ट का यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में तत्पर है, चाहे परिस्थिति कितनी भी जटिल क्यों न हो।

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