हमारे देश का प्रधानमंत्री कौन है?

सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की याचिका कर दी खारिज, कहा बच्चा संपत्ति नहीं, बालिग बेटी की शादी करें स्वीकार

क्या माता-पिता को वयस्क बेटी के फैसलों में दखल देने का हक है? सुप्रीम कोर्ट ने किया बड़ा खुलासा, हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा—अपनी बेटी को संपत्ति समझने की मानसिकता बदलें। पढ़ें पूरी कहानी!

By Praveen Singh
Published on
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की याचिका कर दी खारिज, कहा बच्चा संपत्ति नहीं, बालिग बेटी की शादी करें स्वीकार
सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की याचिका कर दी खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में माता-पिता की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनकी बेटी के पार्टनर के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका इस आधार पर दायर की गई थी कि विवाह के समय उनकी बेटी नाबालिग थी।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि बच्चा कोई संपत्ति नहीं है और वयस्क बेटी के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि लड़की बालिग थी और उसने अपनी सहमति से शादी की थी।

बेटी के रिश्ते को लेकर माता-पिता की आपत्ति

मध्य प्रदेश के एक मामले में लड़की के माता-पिता ने आरोप लगाया था कि उनकी बेटी को बहला-फुसलाकर अगवा किया गया। इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिसमें अपहरण और यौन उत्पीड़न से संबंधित धाराएं लगाई गई थीं।

हालांकि, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की इंदौर पीठ ने 16 अगस्त 2024 को इस मामले में फैसला सुनाते हुए एफआईआर को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने पाया कि लड़की बालिग थी और उसने अपनी इच्छा से विवाह किया था। इसके बाद माता-पिता ने सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की दलीलें खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा कि लड़की बालिग थी और उसकी शादी को वैध माना जाना चाहिए। प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “आप अपनी वयस्क बेटी के रिश्ते को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। आप उसे एक संपत्ति मान रहे हैं, लेकिन बच्चा संपत्ति नहीं है। अपनी बालिग बेटी की शादी को स्वीकार करना सीखें।”

जन्म तिथि प्रमाणपत्र में विसंगति का उल्लेख

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि जन्म तिथि प्रमाणपत्र में कुछ विसंगतियां थीं। अदालत ने इस मुद्दे को आगे नहीं बढ़ाते हुए स्पष्ट किया कि वह हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखेगी।

दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों के दुरुपयोग पर याचिका

दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य जनहित याचिका भी दायर की गई है, जिसमें दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया गया है। बेंगलुरु के एक एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद यह याचिका दाखिल की गई। याचिका में कहा गया कि ये कानून अब विवाहित पुरुषों और उनके परिवारों को परेशान करने के हथियार बन गए हैं।

याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों, वकीलों और विधिवेत्ताओं की एक समिति गठित कर दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों की समीक्षा की जाए। विशाल तिवारी द्वारा दायर इस याचिका में यह भी कहा गया है कि ऐसे मामलों में बढ़ते दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाने चाहिए।

यह भी देखें Lemon Grass Business: कम लागत पर ज्यादा फायदा देने वाला बिजनेस, एक बार बुवाई पर 4 बार कटाई

Lemon Grass Business: कम लागत पर ज्यादा फायदा देने वाला बिजनेस, एक बार बुवाई पर 4 बार कटाई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का व्यापक असर

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय समाज में बेटियों की स्वतंत्रता और उनकी सहमति के महत्व को रेखांकित करता है। यह फैसला यह भी दिखाता है कि अदालतें महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती हैं, खासकर तब जब वे बालिग हों और अपने निर्णय खुद लेने में सक्षम हों।

FAQs

1. सुप्रीम कोर्ट ने माता-पिता की याचिका क्यों खारिज की?
सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर याचिका खारिज की कि लड़की बालिग थी और उसने अपनी मर्जी से शादी की थी। अदालत ने कहा कि बच्चा संपत्ति नहीं है और माता-पिता को बालिग बेटी के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए।

2. हाई कोर्ट ने एफआईआर क्यों खारिज की?
हाई कोर्ट ने पाया कि लड़की बालिग थी और उसने सहमति से विवाह किया था। इसलिए, उसने अपहरण और यौन उत्पीड़न से संबंधित एफआईआर को खारिज कर दिया।

3. दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों के दुरुपयोग पर क्या याचिका दायर हुई है?
बेंगलुरु के एक इंजीनियर की आत्महत्या के बाद दायर याचिका में कहा गया है कि दहेज और घरेलू हिंसा कानूनों का दुरुपयोग बढ़ रहा है। याचिका में इन कानूनों की समीक्षा और सुधार की मांग की गई है।

4. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में क्या टिप्पणी की?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चा संपत्ति नहीं है और माता-पिता को बालिग बेटी के रिश्ते को स्वीकार करना चाहिए। अदालत ने हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

5. क्या इस फैसले का समाज पर प्रभाव पड़ेगा?
यह फैसला महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों की सुरक्षा को रेखांकित करता है। यह समाज को यह संदेश देता है कि वयस्क महिलाओं के निर्णयों का सम्मान किया जाना चाहिए।

यह भी देखें 10वीं पास महिलाओं को मिलेंगे ₹7000 महीने, कैसे करें अप्लाई, देख लो

10वीं पास महिलाओं को मिलेंगे ₹7000 महीने, कैसे करें अप्लाई, देख लो

Leave a Comment