पत्नी के मांग में सिंदूर न होने पर कोर्ट ने दिया तलाक, जानें पूरा मामला

पत्नी के मांग में सिंदूर न होने को कोर्ट ने माना शादी से भावनात्मक दूरी का संकेत। जानें कैसे एक पारंपरिक प्रतीक ने दंपति के रिश्ते की तस्वीर बदल दी और फैसले ने खड़े किए कई सवाल। क्या आपका रिश्ता भी खतरे में है?

By Praveen Singh
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पत्नी के मांग में सिंदूर न होने पर कोर्ट ने दिया तलाक, जानें पूरा मामला
पत्नी के मांग में सिंदूर न होने पर कोर्ट ने दिया तलाक

भारत की एक पारिवारिक अदालत ने एक ऐतिहासिक निर्णय में पत्नी के मांग में सिंदूर न लगाने को शादी से भावनात्मक दूरी का संकेत मानते हुए तलाक (Divorce) को मंजूरी दी। यह मामला भारतीय वैवाहिक संस्कृति और इसके प्रतीकों के महत्व को नए सिरे से परिभाषित करता है। फैमिली कोर्ट डिवीजन III के जज आलोक कुमार ने इस केस की सुनवाई करते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि सिंदूर न लगाने का यह मामला वैवाहिक संबंधों की स्वीकृति और आपसी भावनात्मक जुड़ाव की कमी को दर्शाता है।

पत्नी के मांग में सिंदूर न होने पर कोर्ट ने दिया तलाक

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय संस्कृति में सिंदूर शादी का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है, जो विवाहिता महिला के वैवाहिक संबंधों की स्वीकृति और उसकी शादीशुदा स्थिति को दर्शाता है। इस प्रतीक को न अपनाने को अदालत ने वैवाहिक दायित्वों से दूरी के संकेत के रूप में देखा।

यह केस नेहरू नगर के 56 वर्षीय पूर्व बैंक अधिकारी और उनकी 46 वर्षीय पत्नी का था। दिसंबर 2008 में आर्य समाज के रीति-रिवाजों से शादी के बंधन में बंधे इस दंपति के बीच शादी के बाद से ही पारिवारिक विवाद बढ़ने लगे। पति ने अदालत में असहमति और मतभेदों के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की थी।

परिवारिक विवाद और वैवाहिक तनाव

शादी के बाद पत्नी ने पति पर दबाव बनाया कि वह अपनी 78 वर्षीय विधवा माँ को घर से निकाल दें। यह घटना उनके वैवाहिक जीवन में पहले विवाद का कारण बनी। तनाव तब और बढ़ गया जब नवंबर 2011 में पति को गंभीर बीमारी बर्जर डिजीज का पता चला। इस दौरान पत्नी ने तलाक की मांग की और 25 लाख रुपये के वित्तीय निपटान की शर्त रखी।

घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के आरोप

पत्नी ने पति पर दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के कई मामले दर्ज कराए, जिसमें उसने दावा किया कि पति ने दहेज की मांग की। लेकिन अदालत ने इन आरोपों को साक्ष्यों की कमी के कारण खारिज कर दिया। 2014 में पत्नी marital home छोड़कर चली गई और कथित तौर पर धमकी दी कि वह झूठे दहेज के मामले दर्ज कराएगी।

अदालत का फैसला

कोर्ट की कार्यवाही के दौरान पत्नी बिना सिंदूर लगाए पेश हुई। जब पति के वकील ने इस पर सवाल उठाया तो वह कोई स्पष्ट कारण नहीं बता पाई। इस पर जज आलोक कुमार ने कहा कि पत्नी का यह कदम उनके वैवाहिक संबंधों के प्रति उदासीनता और भावनात्मक दूरी को दर्शाता है। उन्होंने इसे क्रूरता का कृत्य मानते हुए तलाक को मंजूरी दी।

फैसले में जज ने पति को पत्नी को 14.5 लाख रुपये की एकमुश्त गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। साथ ही पत्नी द्वारा लगाए गए दहेज के दावों को साक्ष्यों की कमी के कारण खारिज कर दिया गया। यह मामला भारतीय समाज में वैवाहिक प्रतीकों की भूमिका और उनकी संवैधानिक मान्यता पर प्रकाश डालता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी केवल एक कानूनी समझौता नहीं, बल्कि यह एक भावनात्मक और सांस्कृतिक बंधन है।

FAQs

1. क्या सिंदूर न लगाने से तलाक दिया जा सकता है?
हां, इस केस में अदालत ने इसे शादी से भावनात्मक दूरी का संकेत मानते हुए तलाक मंजूर किया।

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2. पति ने तलाक की अर्जी क्यों दी?
पति ने असहमति, पारिवारिक विवाद, और पत्नी के व्यवहार को आधार बनाते हुए तलाक की अर्जी दी थी।

3. अदालत ने किस आधार पर सिंदूर की भूमिका को महत्वपूर्ण माना?
अदालत ने भारतीय संस्कृति में सिंदूर को विवाह का प्रतीक मानते हुए इसे वैवाहिक संबंधों की स्वीकृति का प्रतीक बताया।

4. तलाक के बाद पत्नी को क्या आर्थिक सहायता दी गई?
अदालत ने पति को 14.5 लाख रुपये की एकमुश्त गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।

5. क्या पत्नी के दहेज उत्पीड़न के आरोप साबित हुए?
नहीं, अदालत ने पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण दहेज उत्पीड़न के आरोपों को खारिज कर दिया।

6. इस फैसले का क्या सामाजिक प्रभाव होगा?
यह फैसला शादी में भावनात्मक जुड़ाव और पारंपरिक प्रतीकों के महत्व पर जोर देता है, जो भविष्य के वैवाहिक मामलों को प्रभावित कर सकता है।

यह फैसला न केवल भारतीय संस्कृति में पारंपरिक प्रतीकों के महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि शादी में दोनों पक्षों को अपने दायित्वों को गंभीरता से लेना चाहिए। यह केस भविष्य में समान मामलों के लिए एक मिसाल बन सकता है, जहां पारिवारिक अदालतें विवाह के प्रतीकों और उनके पालन पर ध्यान देंगी।

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