सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई, जिसमें मांग की गई कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) आरक्षण का लाभ IAS और IPS अधिकारियों के बच्चों को नहीं मिलना चाहिए। अदालत ने इस पर विचार करने से इनकार कर दिया और स्पष्ट किया कि यह संसद का विषय है, न कि न्यायपालिका का। अदालत ने कहा कि कानून बनाने का काम विधायिका का है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और याचिका की पृष्ठभूमि
इस याचिका को मध्य प्रदेश के संतोष मालवीय ने दाखिल किया था। याचिका का तर्क था कि IAS और IPS जैसे उच्च पदों पर रहने वाले लोगों के बच्चे अब समाज की मुख्यधारा में हैं और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर रखना चाहिए। इस तर्क को लेकर पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में याचिका दाखिल हुई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाना उचित होगा क्योंकि इस पर पहले ही शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की है।
क्रीमी लेयर का मुद्दा और अदालत की पिछली टिप्पणियां
बीते अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने SC और ST आरक्षण में क्रीमी लेयर की जरूरत पर जोर दिया था। सात जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षण का लाभ उन लोगों तक पहुंचना चाहिए जो अब भी वंचित हैं। बेंच की राय थी कि जिनके माता-पिता IAS, IPS या अन्य ऊंचे पदों पर हैं, उन्हें आरक्षण से बाहर किया जाना चाहिए।
हालांकि, जस्टिस बीआर गवई ने स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी अदालत की राय मात्र थी और इसका कोई आदेश जारी नहीं हुआ था। उनका कहना था कि संसद इस पर कानून बना सकती है, लेकिन न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
याचिका पर अदालत का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरक्षण नीति को संशोधित करने या इसके दायरे में बदलाव करने का काम संसद का है। अदालत ने यह भी दोहराया कि न्यायपालिका ऐसे मुद्दों पर केवल सुझाव दे सकती है, लेकिन कोई निर्णय नहीं ले सकती।
FAQs
क्या IAS और IPS अधिकारियों के बच्चों को SC-ST आरक्षण मिलता है?
हाँ, वर्तमान में SC-ST आरक्षण का लाभ IAS और IPS अधिकारियों के बच्चों को भी मिलता है।
क्रीमी लेयर का SC-ST आरक्षण पर क्या प्रभाव है?
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि SC-ST आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान होना चाहिए, लेकिन इस पर कोई कानूनी आदेश नहीं दिया गया है।
क्या संसद इस मुद्दे पर कानून बना सकती है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह संसद का विषय है और वह इस पर कानून बना सकती है।
इस याचिका ने एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला बताया। अदालत ने साफ किया कि आरक्षण नीति में किसी भी बदलाव के लिए संसद को कानून बनाना होगा।