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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, मंदिरों में VIP दर्शन और भेदभाव को खत्म करने की मांग

क्या 400-500 रुपये का वीआईपी शुल्क गरीब भक्तों के अधिकारों का हनन है? सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में उठे गंभीर सवाल, 27 जनवरी 2025 की सुनवाई पर देशभर की निगाहें। जानें, कैसे बदलेगी मंदिरों की व्यवस्था!

By Praveen Singh
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सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, मंदिरों में VIP दर्शन और भेदभाव को खत्म करने की मांग
मंदिरों में VIP दर्शन और भेदभाव को खत्म करने की मांग

मंदिरों में VIP दर्शन और भेदभाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई 27 जनवरी 2025 को होगी। याचिका में तर्क दिया गया है कि मंदिरों में विशेष या जल्दी ‘दर्शन’ के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इस व्यवस्था से साधारण भक्तों के साथ भेदभाव होता है, खासकर उन भक्तों के साथ जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं।

मंदिरों में VIP दर्शन और भेदभाव को खत्म करने की मांग

याचिका में कहा गया है कि मंदिरों में 400-500 रुपये तक का ‘वीआईपी दर्शन शुल्क’ लेकर भक्तों को देवता के विग्रह तक जल्दी पहुंचने की सुविधा दी जाती है। यह न केवल समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है, बल्कि महिलाओं, दिव्यांगों और वरिष्ठ नागरिकों जैसे वंचित वर्गों के साथ अन्याय भी है। याचिकाकर्ता ने इस समस्या पर गृह मंत्रालय से बार-बार हस्तक्षेप की मांग की थी, लेकिन अब तक केवल आंध्र प्रदेश को निर्देश जारी किए गए हैं, जबकि अन्य राज्यों में यह समस्या अनदेखी की जा रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया रिपोर्टिंग पर जताई आपत्ति

इस मामले की पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गलत मीडिया रिपोर्टिंग पर नाराजगी व्यक्त की थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट में हुई चर्चा को मीडिया ने तोड़-मरोड़कर पेश किया। वकील ने जवाब दिया कि उन्होंने मीडिया को कोई बयान नहीं दिया था। कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अदालत में उठाए गए सवालों को मीडिया अक्सर गलत दिशा में ले जाता है।

याचिका में चार मुख्य बिंदुओं पर राहत की मांग

याचिका में चार प्रमुख बिंदुओं पर न्यायालय से राहत की मांग की गई है। पहला, मंदिरों में वीआईपी दर्शन शुल्क को संविधान के समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन घोषित किया जाए। दूसरा, सभी भक्तों के लिए समान व्यवहार सुनिश्चित किया जाए। तीसरा, केंद्र सरकार को मंदिरों में समान पहुंच के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) तैयार करने का निर्देश दिया जाए। चौथा, मंदिर प्रबंधन की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाए।

(FAQs)

1. मंदिरों में वीआईपी दर्शन शुल्क क्या है?
यह शुल्क वह अतिरिक्त राशि है जो भक्तों से जल्दी दर्शन या विशेष सुविधा के लिए वसूली जाती है।

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2. यह याचिका क्यों दायर की गई है?
याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह शुल्क संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है और इससे आर्थिक रूप से कमजोर भक्तों के साथ भेदभाव होता है।

3. सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई कब होगी?
इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2025 को निर्धारित की गई है।

4. इस याचिका में कौन से राज्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया है?
आंध्र प्रदेश को पहले ही निर्देश दिए गए हैं, लेकिन उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों पर ध्यान नहीं दिया गया है।

मंदिरों में वीआईपी दर्शन व्यवस्था पर सवाल उठाने वाली यह याचिका संविधान में समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों को लेकर महत्वपूर्ण बहस छेड़ती है। साधारण भक्तों के साथ भेदभाव और सामाजिक न्याय के मुद्दों को केंद्र में रखकर यह मामला देशभर में ध्यान आकर्षित कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दिशा में एक बड़ी मिसाल कायम कर सकता है।

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