
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि विवाहित पुरुष के साथ रोमांटिक संबंध रखने वाली महिला को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत “रिश्तेदार” के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। यह निर्णय न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने सुनाया, जिसमें क्रूरता और दहेज उत्पीड़न के मामलों की परिभाषा को स्पष्ट किया गया।
क्या है मामला जानें
मामला 2019 में दर्ज एक प्राथमिकी से उत्पन्न हुआ, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसके पति आदिशेट्टी और उनके रिश्तेदारों ने दहेज की मांग को लेकर उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। शिकायतकर्ता ने यह भी दावा किया कि उसके पति का एक महिला (अपीलकर्ता) के साथ प्रेम संबंध था, जो शादी के बाद भी जारी रहा।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि यह संबंध उसकी शादीशुदा जिंदगी को तोड़ने का कारण बना और उसे अपमानजनक भाषा और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। इसके आधार पर अपीलकर्ता पर आईपीसी की धारा 498A (पति या रिश्तेदार द्वारा क्रूरता), 504 (जानबूझकर अपमान), 109 (उकसाना) और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाए गए।
कानूनी विवाद और मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच करते हुए दो प्रमुख कानूनी बिंदुओं पर गौर किया:
- “रिश्तेदार” की परिभाषा
क्या विवाहित पुरुष के साथ रोमांटिक संबंध रखने वाली महिला को धारा 498A के तहत “रिश्तेदार” माना जा सकता है? - दहेज उत्पीड़न का संबंध
क्या अपीलकर्ता पर लगाए गए आरोप दहेज की मांग से जुड़े उत्पीड़न के दायरे में आते हैं?
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने “रिश्तेदार” शब्द की व्याख्या करते हुए 2009 के यू. सुवेथा बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक मामले में स्थापित मिसाल का हवाला दिया। न्यायमूर्ति गवई ने स्पष्ट किया कि रिश्तेदार केवल रक्त, विवाह या गोद लेने से संबंधित हो सकते हैं। उन्होंने कहा, “किसी भी तरह से यह नहीं माना जा सकता कि एक प्रेमिका या उपपत्नी ‘रिश्तेदार’ होगी। यह दर्जा केवल रक्त, विवाह या गोद लेने के जरिए ही दिया जा सकता है।”
अदालत ने यह भी कहा कि एफआईआर और आरोप पत्र में अपीलकर्ता के खिलाफ दहेज की मांग से जुड़े उत्पीड़न का कोई साक्ष्य नहीं है। न्यायालय ने जोर देकर कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” हैं और उन्हें जारी रखना अनुचित होगा।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश और अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। यह फैसला भारतीय कानून में आईपीसी की धारा 498A की परिभाषा और सीमा को स्पष्ट करने वाला है।
FAQs
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह फैसला आईपीसी की धारा 498A की सीमाओं को स्पष्ट करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कानून का दुरुपयोग न हो।
क्या यह फैसला दहेज उत्पीड़न को कम आंकता है?
नहीं, अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि क्रूरता के आरोप दहेज की मांग से जुड़े हों।
क्या यह अन्य मामलों पर प्रभाव डालेगा?
हां, यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों की कानूनी व्याख्या में मार्गदर्शन करेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कानूनी प्रक्रिया को सशक्त और न्यायसंगत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे स्पष्ट होता है कि आईपीसी की धारा 498A के तहत “रिश्तेदार” केवल रक्त, विवाह या गोद लेने से जुड़े व्यक्ति हो सकते हैं।