
लोन (Loan) की बढ़ती जरूरतों के साथ हर व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए लोन का सहारा लेता है। चाहे वह Home loan हो, Car Loan, या Business Loan, इसका उद्देश्य जीवन को आसान बनाना होता है। लेकिन यदि Loan लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो यह परिस्थिति बैंक और परिजनों के लिए जटिल बन जाती है।
लोन से जुड़े नियम: को-एप्लिकेंट और गारंटर से संपर्क
Loan लेने वाले की मृत्यु के बाद बैंक सबसे पहले लोन के को-एप्लिकेंट या गारंटर से संपर्क करता है। को-एप्लिकेंट Loan की जिम्मेदारी साझा करता है, और उसकी अनुपस्थिति में गारंटर पर यह जिम्मेदारी आ जाती है। यदि गारंटर या को-एप्लिकेंट भी भुगतान में असमर्थ होते हैं, तो बैंक मृतक के कानूनी उत्तराधिकारियों से रीपेमेंट के लिए संपर्क करता है।
प्रॉपर्टी की जब्ती और बिक्री
यदि Loan चुकाने के लिए कोई जिम्मेदार व्यक्ति आगे नहीं आता, तो बैंक मृतक की प्रॉपर्टी को जब्त कर सकता है। होम Loan या कार Loan जैसी स्थिति में बैंक मकान या गाड़ी को सीज कर नीलामी प्रक्रिया शुरू करता है। नीलामी से प्राप्त राशि को बकाया लोन की भरपाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
टर्म इंश्योरेंस का महत्व
ऐसी घटनाओं से बचने के लिए टर्म इंश्योरेंस एक अहम भूमिका निभाता है। टर्म इंश्योरेंस की मदद से कर्जदार के परिवार पर वित्तीय दबाव कम हो सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि दुर्घटना की स्थिति में बीमा की राशि से Loan का भुगतान किया जा सके। प्रत्येक व्यक्ति को यह सलाह दी जाती है कि वे कम से कम ₹1 करोड़ का टर्म इंश्योरेंस जरूर लें।
FAQs
1. अगर को-एप्लिकेंट या गारंटर नहीं है, तो क्या होगा?
अगर को-एप्लिकेंट या गारंटर नहीं है, तो बैंक कानूनी उत्तराधिकारियों से संपर्क करता है और प्रॉपर्टी को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू करता है।
2. क्या बैंक मृतक के परिवार पर सीधे दबाव डाल सकता है?
बैंक परिवार से संपर्क करके रीपेमेंट के लिए कह सकता है, लेकिन किसी भी अनैतिक दबाव का सहारा नहीं ले सकता।
3. क्या लोन का बीमा करवाना जरूरी है?
लोन का बीमा या टर्म इंश्योरेंस अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आकस्मिक परिस्थितियों में परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
Loan लेते समय सभी कानूनी और वित्तीय पहलुओं को समझना जरूरी है। टर्म इंश्योरेंस जैसे उपायों से न केवल परिवार की सुरक्षा होती है, बल्कि बैंक के साथ रिश्ते भी संतुलित रहते हैं। यदि कोई अप्रत्याशित घटना घटती है, तो सही योजना बनाकर इसके वित्तीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।