
जब म्यूचुअल फंड में निवेश की बात होती है, तो “एनएफओ” यानी न्यू फंड ऑफर का नाम सामने आता है। लेकिन, NFO का सही मतलब क्या है और क्या इसे IPO यानी इनीशियल पब्लिक ऑफर जैसा समझा जा सकता है? यह सवाल हर नए निवेशक के मन में आता है। NFO vs IPO को एक जैसा समझने की गलती करना सही नहीं है। इन दोनों के बीच बड़ा अंतर है, जिसे समझना आपकी निवेश योजना के लिए महत्वपूर्ण है।
NFO का मतलब और म्यूचुअल फंड में इसकी भूमिका
NFO यानी न्यू फंड ऑफर, म्यूचुअल फंड कंपनियों के नए फंड लॉन्च करने का जरिया है। जब किसी एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) को एक नई निवेश योजना शुरू करनी होती है, तो NFO के माध्यम से फंड जुटाया जाता है। NFO के दौरान निवेशकों को प्रति यूनिट 10 रुपये की कीमत पर फंड में निवेश का मौका दिया जाता है।
यह कीमत बाजार में उस समय लागू NAV (नेट एसेट वैल्यू) के हिसाब से बाद में तय होती है। यह समझना जरूरी है कि NFO का मतलब निवेश का आखिरी मौका नहीं होता। निवेशक NFO का सब्सक्रिप्शन पीरियड खत्म होने के बाद भी फंड में निवेश कर सकते हैं।
NFO vs IPO में अंतर
IPO यानी इनीशियल पब्लिक ऑफर के जरिए कंपनियां अपनी हिस्सेदारी यानी शेयर बाजार में लिस्ट करती हैं। IPO में निवेशक कंपनी के शेयर खरीदते हैं और उसके शेयरहोल्डर बनते हैं। वहीं, NFO में म्यूचुअल फंड की यूनिट्स खरीदी जाती हैं, जो बाद में विभिन्न एसेट क्लास जैसे इक्विटी, डेट या हाइब्रिड में निवेश की जाती हैं।
IPO में कंपनी के फंडामेंटल्स, मुनाफे और मार्केट वैल्यूएशन को ध्यान में रखकर इश्यू प्राइस तय की जाती है। दूसरी ओर, NFO में फंड की थीम और रणनीति पर अधिक ध्यान दिया जाता है। NFO के जरिये जुटाई गई राशि को अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश किया जाता है, जैसे Renewable Energy, इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्मॉल कैप या Large Cap इक्विटी।
क्या NFO में निवेश करना फायदेमंद है?
NFO में निवेश करते समय यह जानना जरूरी है कि क्या उसकी थीम और निवेश रणनीति आपकी वित्तीय जरूरतों से मेल खाती है। अगर फंड की थीम जैसे ग्रीन एनर्जी, डिजिटल इकॉनमी, या किसी अन्य नए सेगमेंट में निवेश आपको आकर्षक लगता है और आपकी लॉन्ग टर्म फाइनेंशियल प्लानिंग का हिस्सा है, तो आप इसमें निवेश कर सकते हैं।
हालांकि, निवेश से पहले फंड हाउस की साख, फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड और स्कीम की संभावनाओं पर रिसर्च करना बेहद जरूरी है। NFO में निवेश के लिए जल्दबाजी करने से बचें और अपने निवेश सलाहकार से चर्चा करें।
NFO के बाद भी होता है निवेश का मौका
यह जरूरी नहीं कि आप NFO के दौरान ही निवेश करें। म्यूचुअल फंड में ओपन-एंडेड स्कीम्स आपको किसी भी समय NAV के आधार पर निवेश करने का मौका देती हैं। इसके फायदे यह हैं कि आप फंड के पिछले प्रदर्शन और फंड मैनेजर की विशेषज्ञता को देखकर निर्णय ले सकते हैं।
FAQs
- NFO vs IPO में मुख्य अंतर क्या है?
IPO में आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं और उसके हिस्सेदार बनते हैं, जबकि NFO में आप म्यूचुअल फंड की यूनिट्स खरीदते हैं। - क्या NFO में निवेश करना सही है?
अगर फंड की थीम आपकी वित्तीय योजनाओं से मेल खाती है और फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है, तो NFO में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है। - NFO में निवेश के लिए क्या रिसर्च करनी चाहिए?
आपको फंड की थीम, एसेट मैनेजमेंट कंपनी की साख, फंड मैनेजर का ट्रैक रिकॉर्ड और स्कीम के लक्ष्यों की जांच करनी चाहिए।
NFO vs IPO के बीच अंतर को समझना निवेशकों के लिए जरूरी है। IPO किसी कंपनी में हिस्सेदारी का मौका देता है, जबकि NFO नए म्यूचुअल फंड में निवेश का जरिया है। निवेशक NFO के दौरान ही नहीं, बल्कि उसके बाद भी फंड की यूनिट्स खरीद सकते हैं।