लोन नहीं भरने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, बैंकों के लिए जारी सख्त आदेश

लोन नहीं चुका पाने पर फ्रॉड घोषित करने की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को दिए सख्त निर्देश। अब उपभोक्ताओं को मिलेगा अपना पक्ष रखने का पूरा मौका, जानें कैसे ये फैसला बदल देगा लाखों लोगों की ज़िंदगी!

By Praveen Singh
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लोन नहीं भरने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत, बैंकों के लिए जारी सख्त आदेश
लोन नहीं भरने वालों को सुप्रीम कोर्ट ने दी बड़ी राहत

लोन नहीं भरने वालों के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का बड़ा फैसला आया है। कोर्ट ने बैंकों को सख्त निर्देश दिए हैं कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड (Fraud) घोषित करने से पहले उपभोक्ता को अपना पक्ष रखने का मौका देना अनिवार्य होगा। यह फैसला उन उपभोक्ताओं के लिए राहत भरा है जो मजबूरी के कारण लोन नहीं चुका पाते।

बैंकों को उपभोक्ता को सुनने का देना होगा मौका

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के मास्टर सर्कुलर के तहत बैंकों द्वारा लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने की प्रक्रिया को बिना उपभोक्ता को सुने पूरा करना, उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले संबंधित उपभोक्ता को नोटिस देना और उसे अपने बचाव का मौका देना जरूरी है।

आरबीआई के सर्कुलर पर कोर्ट की टिप्पणी

आरबीआई (RBI) द्वारा जारी किए गए मास्टर सर्कुलर में बैंकों को निर्देश दिया गया था कि वे विलफुल डिफॉल्टर्स (Willful Defaulters) के लोन अकाउंट को फ्रॉड की श्रेणी में डाल दें। इस सर्कुलर को कई अदालतों में चुनौती दी गई थी। तेलंगाना हाई कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट ने भी इस सर्कुलर के खिलाफ अपना फैसला दिया था। हाई कोर्ट ने इसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर सहमति जताते हुए कहा कि लोन न चुका पाने की स्थिति में उपभोक्ता का पक्ष सुनना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि सीधे किसी अकाउंट को फ्रॉड घोषित करना, उस उपभोक्ता को ब्लैकलिस्ट करने जैसा है और यह उसके सिबिल स्कोर (CIBIL Score) पर बुरा असर डालता है।

सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों की एकतरफा कार्रवाई पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों द्वारा बिना उपभोक्ता को सुनवाई का मौका दिए लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने की प्रक्रिया को गलत ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी उपभोक्ता को उसकी स्थिति स्पष्ट करने का मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराना जरूरी नहीं है।

लोन नहीं भरने वालों को राहत

यह फैसला उन उपभोक्ताओं के लिए बड़ी राहत है जो आर्थिक तंगी या अन्य मजबूरी के कारण समय पर लोन का भुगतान नहीं कर पाते। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि बैंकों को उपभोक्ताओं के अधिकारों का सम्मान करना होगा और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर देना होगा।

क्या है आरबीआई का मास्टर सर्कुलर?

आरबीआई का मास्टर सर्कुलर बैंकों को यह अधिकार देता है कि वे विलफुल डिफॉल्टर्स के लोन अकाउंट्स को फ्रॉड घोषित करें। इस सर्कुलर के तहत बैंकों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे समय पर लोन नहीं चुकाने वाले उपभोक्ताओं पर सख्त कार्रवाई करें। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्कुलर के क्रियान्वयन में बैंकों द्वारा एकतरफा कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं और इसे संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ बताया है।

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की समान राय

तेलंगाना हाई कोर्ट और गुजरात हाई कोर्ट ने आरबीआई के मास्टर सर्कुलर पर अपने फैसलों में इसे उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन फैसलों को सही ठहराते हुए बैंकों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि उपभोक्ताओं को उनकी बात रखने का अवसर देना जरूरी है।

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FAQs

1. सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को क्या निर्देश दिए हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया है कि किसी भी लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करने से पहले उपभोक्ता को अपना पक्ष रखने का मौका देना अनिवार्य होगा।

2. आरबीआई का मास्टर सर्कुलर क्या कहता है?
आरबीआई का मास्टर सर्कुलर बैंकों को निर्देश देता है कि वे विलफुल डिफॉल्टर्स के लोन अकाउंट्स को फ्रॉड की श्रेणी में डाल दें।

3. हाई कोर्ट ने आरबीआई के सर्कुलर पर क्या फैसला दिया?
हाई कोर्ट ने कहा कि बिना उपभोक्ता को सुनवाई का मौका दिए लोन अकाउंट को फ्रॉड घोषित करना, संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

4. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का उपभोक्ताओं पर क्या असर होगा?
यह फैसला उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करेगा और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका देगा, जिससे उनकी सिबिल स्कोर पर गलत प्रभाव नहीं पड़ेगा।

5. क्या बैंकों को लोन डिफॉल्ट पर सीधे कार्रवाई करने की अनुमति है?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बैंकों को लोन डिफॉल्ट के मामलों में एकतरफा कार्रवाई से बचना होगा और उपभोक्ता को पहले नोटिस देकर उसका पक्ष सुनना होगा।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लोन नहीं चुकाने की स्थिति में उपभोक्ताओं को बैंकों से उचित सुनवाई का मौका मिलना अब जरूरी हो गया है। बैंकों को भी अपनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और उपभोक्ता हितों को प्राथमिकता देनी होगी।

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