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2-4 महीने टिकी शादी,तलाक में मांग लिए 500 करोड़, सुप्रीम कोर्ट ये दे दिया फैसला

क्या तलाक के बाद गुजारा भत्ता की सीमा तय की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला और क्या है इस फैसले का समाज पर प्रभाव?

By Praveen Singh
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2-4 महीने टिकी शादी,तलाक में मांग लिए 500 करोड़, सुप्रीम कोर्ट ये दे दिया फैसला

एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या की घटना के बाद, समाज में गुजारा भत्ते के बहाने पुरुषों को कथित तौर पर प्रताड़ित करने के मसले पर बहस छिड़ी हुई है। इस बहस के बीच एक नया मामला सामने आया है, जिसने सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण फैसला जन्म दिया है। यह मामला एक भारतीय-अमेरिकी नागरिक की शादी टूटने के बाद गुजारा भत्ते के मामले में आया। अमेरिका में एक सफल आईटी कंसल्टेंसी चलाने वाले इस व्यक्ति की शादी केवल कुछ माह ही टिक पाई, जिसके बाद पत्नी ने पति से 500 करोड़ रुपये के गुजारा भत्ते की मांग की। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, और अंत में शीर्ष अदालत ने इस मामले में एक अहम फैसला सुनाया।

पूरा मामला क्या है?

यह मामला एक भारतीय-अमेरिकी नागरिक का है, जो 31 जुलाई 2021 को भारत की एक महिला से शादी करने के बाद विवादों में फंसा। यह उसकी दूसरी शादी थी, पहली पत्नी से तलाक लेने के बाद उसने दूसरी शादी की थी। पहली पत्नी से तलाक के बाद उसने अपनी पत्नी को 500 करोड़ रुपये के गुजारा भत्ते के रूप में दिया था। अब जब उसकी दूसरी शादी टूट गई, तो उसकी दूसरी पत्नी ने भी पहले वाली पत्नी की तरह गुजारा भत्ते की मांग की। इस मामले में महिला ने 500 करोड़ रुपये की मांग की थी।

पति ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत यह अपील की थी कि उसकी पूरी तरह से टूट चुकी शादी को रद्द कर दिया जाए। वहीं, दूसरी पत्नी ने भी अपनी मांग को लेकर कहा कि उसे भी अपनी पहली पत्नी के बराबर स्थायी गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना पड़ा, जिसके बाद अदालत ने अपना अहम फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने इस मामले पर विचार किया। दोनों न्यायाधीशों ने इस मामले में तलाकशुदा पत्नी की गुजारा भत्ता की मांग पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि जो महिला अपने पति के साथ कुछ ही महीने रही हो, वह पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ता कैसे मांग सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, गुजारा भत्ता का उद्देश्य पत्नी को गरीबी से बचाने, उसकी गरिमा बनाए रखने और सामाजिक न्याय दिलाने का है। यह कानून पत्नी को उस स्तर का जीवन जीने का अधिकार देता है, जैसा वह अपने वैवाहिक घर में जी रही थी, लेकिन यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि पति उसे हमेशा अपनी वर्तमान स्थिति के अनुसार बनाए रखे।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर पति ने अलगाव के बाद अपनी स्थिति में सुधार किया है, तो उसे अपनी पूर्व पत्नी को उस स्तर पर बनाए रखने का बोझ डालना सही नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि अगर पति अलगाव के बाद गरीब हो जाए तो क्या पत्नी संपत्ति की बराबरी की मांग करेगी? इस पर कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि गुजारा भत्ता तय करने का कोई स्थिर और स्पष्ट फॉर्मूला नहीं है। इसलिए, दूसरी पत्नी पहली पत्नी के बराबर राशि की मांग नहीं कर सकती है।

मामले की और जटिलताएं

दूसरी पत्नी ने याचिका में यह भी कहा था कि पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये के स्थायी गुजारा भत्ते के अलावा, अमेरिका के वर्जीनिया में एक घर भी दिया गया था। वहीं, पति ने दूसरी पत्नी को 20 से 40 लाख रुपये के गुजारा भत्ते का प्रस्ताव दिया, यह कहते हुए कि उसने पत्नी के साथ बहुत कम समय बिताया और इतने दिनों में कई मामले भी दायर किए गए थे। कोर्ट ने इस प्रस्ताव पर विचार करते हुए फैसला सुनाया कि पति को 10 करोड़ रुपये स्थायी गुजारा भत्ता देना होगा। इसके साथ ही महिला को पुणे और भोपाल में ससुर के दो फ्लैट खाली करने के लिए 2 करोड़ रुपये अतिरिक्त देने होंगे। इसके अलावा, पति को मुकदमेबाजी के खर्च के रूप में 30 लाख रुपये भी देने होंगे।

समाज पर प्रभाव

इस फैसले ने एक बार फिर गुजारा भत्ता के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है। समाज में यह चर्चा हो रही है कि क्या पति-पत्नी के बीच तलाक के बाद इस तरह की मांग करना सही है या नहीं। जहां एक ओर महिलाएं अपने अधिकारों की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर पुरुषों का यह कहना है कि कई बार महिलाएं सिर्फ पैसों की लालच में इस तरह के दावे करती हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस संदर्भ में एक अहम मिसाल बन सकता है, जो गुजारा भत्ते की सीमा और न्यायपूर्ण वितरण के विषय में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करता है।

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