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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, डेढ़ हजार दुकानों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आवासीय क्षेत्र में बने अवैध व्यावसायिक स्थलों को ढहाने का आदेश दिया। जानिए कैसे शास्त्री नगर की सेंट्रल मार्केट में डेढ़ हजार दुकानों पर कोर्ट का बुलडोजर चलेगा और इसके पीछे की पूरी कहानी।

By Praveen Singh
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, डेढ़ हजार दुकानों के अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने का दिया आदेश

मेरठ (Uttar Pradesh) की सेंट्रल मार्केट में अवैध निर्माण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। आवासीय क्षेत्र के भू-उपयोग नियमों में बदलाव करके किए गए निर्माण को अवैध करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें ढहाने का आदेश दिया है। यह फैसला सेंट्रल मार्केट की डेढ़ हजार से अधिक दुकानों और व्यावसायिक स्थलों पर लागू होगा, जिससे स्थानीय व्यापारियों को बड़ा झटका लगा है।

अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने मेरठ के शास्त्री नगर में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर किए गए सभी व्यावसायिक निर्माणों को अवैध घोषित किया। कोर्ट ने इन भवनों को तीन महीने के भीतर खाली करने और फिर इन्हें ध्वस्त करने का आदेश दिया है।

इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि इस कार्य में संबंधित प्राधिकरण पूरी जिम्मेदारी के साथ कार्रवाई करें। यदि किसी अधिकारी ने इस कार्य में लापरवाही की, तो उनके खिलाफ कोर्ट की अवमानना के तहत कार्रवाई की जाएगी।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को बहाल रखा

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दिए गए उस आदेश को बहाल रखा है, जिसमें भूखंड 661/6 पर अवैध निर्माणों को गिराने के निर्देश दिए गए थे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आवासीय क्षेत्र में हुए व्यावसायिक निर्माणों को हर हाल में ध्वस्त किया जाएगा।

कोर्ट ने 19 नवंबर को इस मामले में सुनवाई पूरी करने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद, आवास एवं विकास परिषद से मेरठ के शास्त्री नगर के 499 भूखंडों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई। परिषद ने यह रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि शास्त्री नगर की स्कीम-7 और स्कीम-3 के तहत कुल 1,478 आवासीय भूखंडों का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है।

व्यापारियों में हड़कंप

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से सेंट्रल मार्केट में बनी डेढ़ हजार से अधिक दुकानों और व्यावसायिक स्थलों के मालिकों में हड़कंप मच गया है। व्यापारियों ने पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। शुरू में कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाई थी, लेकिन अब 10 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माणों को हटाने का अंतिम फैसला सुनाया है।

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लापरवाही के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश

कोर्ट ने न केवल अवैध निर्माणों को हटाने का आदेश दिया है, बल्कि आवास एवं विकास परिषद के उन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक और विभागीय कार्रवाई के भी निर्देश दिए हैं, जिनके कार्यकाल में यह अवैध निर्माण हुआ।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आवास एवं विकास परिषद को इस मामले में अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। यदि किसी भी स्तर पर लापरवाही होती है, तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला मेरठ की सेंट्रल मार्केट के भूखंड 661/6 से जुड़ा है, जिसे आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम से आवंटित दिखाया गया है। 1992 से 1995 के बीच इस प्लॉट पर बनी दुकानों को बेच दिया गया, लेकिन उन दुकानों का मालिकाना हक कभी व्यापारियों के नाम पर दर्ज नहीं किया गया।

इससे जुड़े मजेदार तथ्य यह भी हैं कि परिषद ने सिविल कोर्ट और हाई कोर्ट में वीर सिंह को ही प्रॉपर्टी का मालिक मानते हुए पक्षकार बनाया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस प्लॉट पर हुए निर्माण को अवैध घोषित किया था। व्यापारियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बेहद सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आवासीय क्षेत्र के भू-उपयोग परिवर्तन कर व्यावसायिक निर्माण को किसी भी स्थिति में मान्यता नहीं दी जा सकती। यह फैसला आवासीय क्षेत्रों में अवैध व्यावसायिक गतिविधियों के खिलाफ एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।

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