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निजी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 46 साल पुराने फैसले को पलटा सरकार से छीना ये अधिकार

"निजी संपत्ति और सार्वजनिक भलाई पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 1978 के पुराने जजमेंट को पलटते हुए सीमित की राज्य की शक्ति। जानें, कैसे यह निर्णय आपकी संपत्ति को सुरक्षित करता है और संविधान के मूल ढांचे को मजबूत बनाता है।"

By Praveen Singh
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निजी संपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 46 साल पुराने फैसले को पलटा सरकार से छीना ये अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निजी संपत्तियों और सार्वजनिक भलाई के लिए उनके अधिग्रहण और पुनर्वितरण के संबंध में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार हर निजी संपत्ति को अधिग्रहित नहीं कर सकती। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के दायरे में आए एक संवेदनशील मामले पर दिया गया।

इस निर्णय ने 1978 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक जजमेंट को पलट दिया, जो न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में दिया गया था। उस समय कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है। लेकिन वर्तमान संविधान पीठ ने इसे उन्नत समाजवादी आर्थिक विचारधारा के संदर्भ में अस्थिर करार दिया।

निजी संपत्ति और अनुच्छेद 39 (बी)

अनुच्छेद 39 (बी) सार्वजनिक भलाई के लिए संपत्ति के अधिग्रहण और पुनर्वितरण पर राज्य की शक्ति से संबंधित है। सीजेआई ने यह स्पष्ट किया कि यह अनुच्छेद केवल उन संपत्तियों पर लागू होता है, जो सीधे सार्वजनिक संसाधन के रूप में उपयोग हो सकती हैं।

सीजेआई ने कहा, “किसी व्यक्ति के मालिकाना हक वाले प्रत्येक संसाधन को सामुदायिक भौतिक संसाधन नहीं कहा जा सकता। केवल भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना पर्याप्त नहीं है।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा कि अनुच्छेद 31 (सी), जो पहले संशोधित किया गया था, का असंशोधित रूप ही लागू रहेगा। यह निर्णय राज्य की शक्ति को सीमित करता है और निजी संपत्तियों की सुरक्षा के अधिकार को बढ़ावा देता है।

पुराने फैसले का पुनर्मूल्यांकन

1978 में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की अध्यक्षता में दी गई व्याख्या में कहा गया था कि निजी व्यक्तियों की संपत्तियों को सामुदायिक संपत्ति के तौर पर अधिग्रहित किया जा सकता है। परंतु, वर्तमान संविधान पीठ ने इसे उन्नत समाजवादी आर्थिक दृष्टिकोण के लिए अस्थिर बताया।

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सीजेआई ने कहा, “42वें संशोधन की धारा 4 का उद्देश्य अनुच्छेद 39 (बी) को निरस्त करना और प्रतिस्थापित करना था। लेकिन हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इसका असंशोधित रूप ही संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप है।”

न्याय का नया अध्याय

यह फैसला न केवल निजी संपत्तियों के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि राज्य की शक्ति को भी संतुलित करता है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि राज्य की भूमिका सार्वजनिक भलाई तक सीमित रहनी चाहिए और अनावश्यक रूप से निजी संपत्तियों में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

FAQs

1. क्या सभी निजी संपत्तियां सार्वजनिक भलाई के लिए अधिग्रहित की जा सकती हैं?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल उन्हीं संपत्तियों को अधिग्रहित किया जा सकता है जो सार्वजनिक संसाधन के तौर पर आवश्यक हों।

2. क्या यह फैसला संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित करता है?
नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को संविधान के मूल ढांचे के अनुरूप बताया है।

3. इस फैसले का मौजूदा संपत्ति मालिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
यह फैसला निजी संपत्ति के अधिकार को और मजबूत करता है, जिससे राज्य का अनावश्यक हस्तक्षेप रोका जाएगा।

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