प्रॉपर्टी के मालिकाना (Property Ownership) हक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह फैसला प्रॉपर्टी लेन-देन से संबंधित दस्तावेजों जैसे वसीयत (Will) और पॉवर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) की वैधता पर है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इन दस्तावेजों के आधार पर अचल संपत्ति का मालिकाना हक प्राप्त नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: वसीयत और पॉवर ऑफ अटॉर्नी मान्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने एक मामले में कहा कि वसीयत और पॉवर ऑफ अटॉर्नी को प्रॉपर्टी ट्रांसफर या मालिकाना हक के लिए वैध दस्तावेज नहीं माना जा सकता। घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी के मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि वसीयतकर्ता की मृत्यु के पहले विल का कोई प्रभाव नहीं होता। साथ ही, पॉवर ऑफ अटॉर्नी धारक द्वारा कोई सेल डीड (Sale Deed) निष्पादित न करने की स्थिति में वह दस्तावेज स्वतः अमान्य हो जाता है।
पॉवर ऑफ अटॉर्नी और वसीयत: मालिकाना हक के लिए नहीं
अदालत ने कहा कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी और विल को ऐसे दस्तावेज नहीं माना जा सकता जो अचल संपत्ति में अधिकार प्रदान करें। किसी भी राज्य या हाईकोर्ट में यदि इन दस्तावेजों को मालिकाना हक के प्रमाण के रूप में मान्यता दी जाती है, तो यह सांविधिक कानून का उल्लंघन होगा। संपत्ति का स्वामित्व या ट्रांसफर केवल एक पंजीकृत हस्तांतरण विलेख (Registered Conveyance Deed) के माध्यम से ही हो सकता है।
वसीयत पर सुप्रीम कोर्ट का रुख
कोर्ट ने विल से जुड़े मामलों पर कहा कि वसीयत तब तक लागू नहीं हो सकती जब तक वसीयतकर्ता की मृत्यु न हो जाए। वसीयतकर्ता के जीवित रहते हुए वसीयत का कोई प्रभाव नहीं होता और इसे अचल संपत्ति के स्वामित्व के कागज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।
पॉवर ऑफ अटॉर्नी पर अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पॉवर ऑफ अटॉर्नी को मालिकाना हक के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। यह केवल एक प्रतिनिधि दस्तावेज है जो धारक को कुछ कार्य करने की अनुमति देता है। यदि पॉवर ऑफ अटॉर्नी धारक किसी संपत्ति की सेल डीड या अन्य आवश्यक दस्तावेज निष्पादित नहीं करता है, तो यह दस्तावेज अप्रासंगिक हो जाता है।
प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस
सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्रा. लिमिटेड बनाम हरियाणा राज्य मामले का हवाला देते हुए कहा कि अचल संपत्ति का स्वामित्व केवल एक पंजीकृत दस्तावेज के माध्यम से ही ट्रांसफर किया जा सकता है। विल और पॉवर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर प्रॉपर्टी बेचना या ट्रांसफर करना कानून के खिलाफ है।
कैसे मिलेगा प्रॉपर्टी का वैध मालिकाना हक?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 100 रुपये से अधिक मूल्य की अचल संपत्ति के स्वामित्व या अधिकार को केवल पंजीकरण के माध्यम से ही मान्यता दी जा सकती है। कोई भी समझौता, मुख्तारनामा या वसीयतनामा इसके लिए पर्याप्त नहीं होगा।
FAQs
Q1. क्या वसीयत से प्रॉपर्टी का स्वामित्व मिल सकता है?
नहीं, वसीयत से स्वामित्व तब तक लागू नहीं होता जब तक वसीयतकर्ता की मृत्यु न हो जाए। वसीयतकर्ता के जीवित रहते हुए यह दस्तावेज किसी को अधिकार नहीं देता।
Q2. क्या पॉवर ऑफ अटॉर्नी से प्रॉपर्टी ट्रांसफर हो सकती है?
नहीं, पॉवर ऑफ अटॉर्नी से केवल कुछ कार्य करने का अधिकार मिलता है, लेकिन स्वामित्व या ट्रांसफर के लिए पंजीकृत हस्तांतरण विलेख आवश्यक है।
Q3. क्या विल और पॉवर ऑफ अटॉर्नी मालिकाना हक के दस्तावेज माने जाते हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ये दस्तावेज अचल संपत्ति के मालिकाना हक के लिए वैध नहीं हैं।
Q4. प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए जरूरी दस्तावेज क्या हैं?
प्रॉपर्टी ट्रांसफर के लिए Registered Conveyance Deed की आवश्यकता होती है। इसे पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत करना अनिवार्य है।
Q5. क्या पॉवर ऑफ अटॉर्नी बिना सेल डीड के मान्य होती है?
नहीं, यदि पॉवर ऑफ अटॉर्नी धारक किसी सेल डीड या अन्य वैध दस्तावेज निष्पादित नहीं करता, तो यह दस्तावेज अमान्य हो जाता है।